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पातालेश्वर

श्री ज्योतिर्लिंग सिद्धपीठ पातालेश्वर महादेव मन्दिर (Pataleshwar Mahadev Temple) बूड़िया (ग्राम-दयालगढ़) – जिला यमुनानगर

हरियाणा के यमुनानगर जिले में बूड़िया (ग्राम-दयालगढ़) में स्थित प्राचीन महादेव मन्दिर बहुत ही प्रसिद्ध है। इस मन्दिर को सिद्धपीठ पातालेश्वर महादेव मन्दिर (Pataleshwar Mahadev Temple) के नाम से जाना है और यह पूरे हरियाणा के साथ-साथ ओर भी कई राज्यों में प्रसिद्ध है। यहां लोग बहुत दूर-दूर से आकर अपनी मनोकामना पूरी करते है।

इतिहास और मान्यताएं

कहा जाता है कि यह मन्दिर मुगलों के समय से अस्तित्व में है तथा इस मन्दिर में मौजूद शिवलिंग मुगलों के समय में स्वयं प्रकट हुए थे अर्थात यह शिवलिंग अपने आप ही पाताल से प्रकट हुए थे, इसलिए इस शिवलिंग को स्वयंभू पाताल शिवलिंग के नाम से जाना जाता है।

कहा जाता है कि जब यह शिवलिंग धरती से स्वयं प्रकट हुए तब मुगलों ने इन्हें खंडित कर दिया और ये तीन भागों में विभाजित हो गए और इस शिवलिंग से कुंडधारा भी बहकर प्रकट हुई थी, आज भी यह तीनों शिवलिंग यहां इस मन्दिर में उपस्थित है।

एक शिवलिंग मन्दिर के भीतर है और दो शिवलिंग मंदिर के साथ में उपस्थित है।

शिवलिंग

सिद्धपीठ पातालेश्वर महादेव मन्दिर में एक विशाल भगवान शिव की प्रतिमा विराजमान है, जहां पर यह प्रतिमा है उस स्थान को शिव बावड़ी (Shiv Bawdi) के नाम से सम्बोधित किया जाता है। यह विशाल प्रतिमा एक प्राचीन कुएं के पास स्थित है, इस कुएं को पाताल कुएं के नाम से पुकारा जाता है। इस प्राचीन कुए में वर्षो से जल उपलब्ध रहता है। इस कुएं से जुड़ी भी अनेक मान्यताएं है, कहा जाता है कि जब राजा बीरबल यहां बूड़िया शहर में निवास करते थे तब इस कुएं में उनकी रानी स्नान करने आया करती थी।

स्वयंभू शिवलिंग मंदिर के पीछे इतिहास से जुड़ी कई छोटी और बहुत पुरानी इमारतें आज भी मौजूद हैं, जो लोगों को संदेह के घेरे में रखती हैं। इतना ही नहीं मुख्य मन्दिर यानि स्वयं-भू मंदिर में प्रवेश के पश्चात मंदिर के सामने कुछ पग चलने पर एक रास्ता नीचे वाले मन्दिर में जाता है, जोकि हमें भगवान शिव की कई स्मृतियों से जोड़ता है।

यह वे पुरानी इमारतें है, जो मन्दिर के साथ आज भी उपस्थित है।

पुरानी इमारत

नव निर्माण कार्य और विकास

वर्तमान में इस मन्दिर की प्रबंधक कमेटी के प्रधान डा. जनार्दन शर्मा जी है, उन्होंने इस मन्दिर में अनेकों नए विकास कार्य किए है और कई नव निर्माण भी करवाये है। कहा जाता है कि इन्होने ने ही कई दिग्गज श्रद्धालुओं के साथ मिलकर इस प्राचीन महादेव मन्दिर में कई फुट ऊँची शिव प्रतिमा का निर्माण करवाया था जिसके पास बहुत ही पुरानी बावड़ी आज भी उपलब्ध है इसीलिए इस शिव प्रतिमा वाले स्थान को प्राचीन शिव-बावड़ी के नाम से कई राज्यों में जाना जाता है।

इस पातालेश्वर महादेव मन्दिर में एक नए मन्दिर का निर्माण पिछले कुछ 8-9 सालों में किया गया था। उस मन्दिर में भगवान श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण जी, माँ जगजननी और भगवान श्री गणेश जी अर्थात श्री सिद्धिविनायक जी विराजमान है तथा दरबार बहुत ही सुंदर सजाया गया है। इस मन्दिर में भक्तों के बैठने के लिए तथा भजन-कीर्तन करने लिए बृहत्काय स्थल का निर्माण भी किया गया है।

लगभग 8-9 साल पहले भगवान शिव-शंकर के इस पवित्र स्थान पर एक शनि मंदिर भी बनाया गया था, जो वर्तमान में यहां उपस्थित है। इस शिव मन्दिर में बहुत पुराना पीपल का वृक्ष है जिसकी लोग बहुत समय से पूजा करते है, उसी वृक्ष की समीप भगवान शनि अर्थात कर्मफल दाता शनि का मन्दिर बनाया गया। श्रद्धालुओं में शनि भगवान को लेकर बहुत आस्था है तथा पूरे बूड़िया शहर के लोग और (दयालगढ़) ग्रामवासी इस मन्दिर में आकर अपनी मनोकामना पूर्ण करते है।

शनि मंदिर

त्योहारों का आयोजन

श्री ज्योतिर्लिंग सिद्धपीठ पातालेश्वर महादेव मन्दिर बूड़िया (दयालगढ़) में प्रत्येक त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। देवों के देव महादेव का त्यौहार महाशिवरात्रि के दिन पूरा गाँव और शहर महादेव के रंग में रंग जाता है।

बूड़िया में स्थित सिद्धपीठ पातालेश्वर महादेव मन्दिर में महाशिवरात्रि के पर्व पर एक विशाल उत्सव का आयोजन किया जाता है। एक दिन पहले शोभायात्रा निकाली जाती है, जो पुरे बूड़िया शहर में चलाई जाती है और फिर इस प्रसिद्ध शिवालय में आती है।

महाशिवरात्रि (Mahashivratri) वाले दिन कलश पूजन के पश्चात जलधारा प्रारंभ की जाती है, कलश पूजन सुबह के समय 4:30 बजे शुरू किया जाता है और फिर पूरे दिन लाखो की तादात में यहां लोगो की भीड़ उमड़ती है और लोग भगवान शिव को बेर, फूलों की माला, बेलपत्र, भांग की पत्तियां, धतूरा इत्यादि अर्पित करते है। लोग बहुत दूर-दूर से आकर ज्योतिर्लिंग शिवलिंग का जलाभिषेक करते है। महाशिवरात्रि के इस पावन अवसर पर लोग दूर-दूर से देर रात तक 11-12 बजे तक आते रहते है और भगवान शिव का जल से अभिषेक करते है और बड़े पैमाने पर मेला भी लगता है।

बहुत लोग तो इस दिन भगवान शिव के दिग्गज स्थलों में से एक हरिद्वार (Haridwar) में स्थित गोरी-शंकर मन्दिर की गंगा नदी से गंगाजल लाकर स्वयं-भू शिवलिंग का अभिषेक करते है।

जलधारा के दौरान भजन-गंगा का कार्यक्रम भी किया जाता है, जिसमे भगवान शिव (Lord Shiva) की झकियाँ प्रस्तुत की जाती है और भगवान शिव के मधुर भजन गए जाते है और यह उत्सव पूरे दिन चलाया जाता है ताकि श्रद्धालु पूजा के साथ-साथ प्रभु का ध्यान भी कर सकें।

महाशिवरात्रि के अगले दिन बड़े पैमाने पर भण्डारा किया जाता है। इस दिन भी श्रद्धालु भगवान शिव की कृपा प्राप्त करते है और भण्डारा ग्रहण करते है। इतना ही नहीं इस दिन भी भजन-गंगा का कार्यक्रम किया जाता है और इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा भजन-कीर्तन किया जाता है।

इसी प्रकार दशहरे के महान पर्व पर भी यहां बहुत बड़ा आयोजन किया जाता है। शोभायात्रा निकाली जाती है और इस मन्दिर के मैदान वाले भाग में कई फुट ऊँचा रावण का पुतला बनाया जाता है। पूरे बूड़िया शहर में भगवान श्री राम की शोभायात्रा निकाली जाती है और फिर यहां इस महादेव मन्दिर में आकर रावण का पुतला जलाया जाता है। इतना ही नहीं बहुत बड़ा मेला भी इस दिन यहां लगता है।

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