Mahaparva Shivratri
महाशिवरात्रि भारतीयों का बहुत ही प्रमुख, प्रतिष्ठित और विख्यात त्यौहार है। यह भगवान शिव का बहुत ही वैभवशाली और महान पर्व है, जिसे लोग बहुत ही उत्साह से मनाते है। महाशिवरात्रि साल में एक बार आती है। यह पावन उत्सव फाल्गुन मास (Falgun Month) की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को बहुत ही हर्षावेश और आंनद के साथ मनाया जाता है।
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मान्यताएं
शिव पुराण (Shiv Puran) में बताया गया है कि शिव जी के अनुर्वर (निराकार) स्वरूप का प्रतीक ‘लिंग’ इस पवित्र दिन को ही प्रकट हुआ था, जो करोड़ो सूर्यों के समान उजागर हो रहा था और सबसे पहले ब्रह्मा तथा विष्णु ने इसकी पूजा की थी तब से यह दिन महाशिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
ऐसा भी माना जाता है कि इसी विशिष्ट तिथि को भगवान ब्रह्मा जी के रूद्र स्वरूप में मध्यरात्रि के समय महादेव का अवतरण हुआ।
कई जगहों पर यह भी कहा जाता कि इस दिन भगवान शिव-शंकर ने तांडव करते अपना तीसरा नेत्र (Third Eye) खोल दिया तथा अपने नेत्र की अग्नि से विश्व का अंत कर दिया।
पहली कथा के अनुसार इस दिन माता पार्वती और महादेव का विवाह हुआ है। लोग इस दिन को बड़े ही उत्साह के साथ भगवान शिव शंकर और माता पार्वती की सालगिरह के रूप में मनाते है।
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महत्व
महादेव को सभी भक्तजन आदि गुरु या प्रथम गुरु कहते है और उन्हीं से योगिक परंपरा शुरू हुई थी। महाशिवरात्रि का यह पावन अवसर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह दिन उनके लिए भी आवश्यक है, जो जीवन की कई प्रकार की अभिलाषाओं में लीन हैं तथा उनके लिए भी जो गृहप्रबंध की अवस्थाओं में वशीभूत रहते है। कुछ लोग तो शिवरात्रि के इस बहुमूल्य दिवस को महादेव के द्वारा विरोधियों पर विजय पाने का दिन भी मानते है।
बशर्ते, योगियों के लिए यह तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण है, इस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ अभिन्न हो जाते थे। वे एक पहाड़ (पर्वत) की तरह स्थायी, दृढ़ व सुप्त, अचल, गतिहीन हो जाते थे। महाशिवरात्रि की रात महीने की सबसे अंधकारमय रात होती है।
व्रत (उपवास ) और पूजा पाठ
देवों के देव महादेव को सबसे अधिक पूजा जाता है और जब भगवान शिव का यह त्यौहार आता है, तब लोग बहुत ही हर्षोउल्लाश के साथ यह त्यौहार बनाते है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव की पूजा करते है।
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अत्यधिक लोग आज के दिन भगवान शिव-शंकर के नाम का व्रत (Fast) रखते है और शिवलिंग का गंगाजल, दूध आदि से अभिषेक करते है तथा शिवलिंग पर बेलपत्र, भाँग की पत्तियां, धतूरा इत्यादि अर्पित करते है। माना जाता है कि महादेव को बेलपत्र, भाँग की पत्तियां, धतूरा आदि बहुत प्रिय है। इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है।
महादेव को आदियोगी भी कहा जाता है, इसलिए साधक या योगी इस दिन महादेव के रंग में रंग जाते है अर्थात ध्यान करते है, ऊॅं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते है। भगवान को हमेशा सात्विक वस्तुएं ही अर्पित करनी चाहिए।
भगवान शिव को प्रत्येक राज्य में अलग अलग तरीकों से पूजा जाता है तथा पूजा में अनेक सामग्री का प्रयोग किया जाता है जैसे शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, पुष्प, पंच फल, पंच मेवा, पूजा के बर्तन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, रोली, मौली, जनेऊ, पांच प्रकार की मिठाईयां, धतूरा, भांग, बेर, जौ की बालें, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, चंदन, आदि।
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