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मोदी क्यों नहीं रुकेंगे रूसी तेल खरीदने से?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का तेवर तल्ख है। उन्होंने भारत पर “रूसी तेल की भारी खरीदारी” का आरोप लगाते हुए भारतीय आयातों पर “काफी ज्यादा” टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है। उनका कहना है कि यह खरीदारी यूक्रेन युद्ध में रूस की मदद कर रही है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ इनकार कर दिया है। भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा! यह जिद क्यों? आइए समझते हैं इस विवाद के पीछे के मुख्य कारण:

🔥 मोदी सरकार के रुकने से इनकार के प्रमुख कारण:

  1. ऊर्जा सुरक्षा – जनता का पेट भरना जरूरी:
    • दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है भारत।
    • पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद रूसी तेल सस्ते दामों (डिस्काउंट) पर उपलब्ध है।
    • यह सस्ता तेल ऊर्जा कीमतों को नियंत्रित रखता है, जिससे 140 करोड़ भारतीयों को राहत मिलती है।
    • जनवरी-जून 2025 तक, भारत रोजाना 17.5 लाख बैरल रूसी तेल आयात कर रहा था (पिछले साल से 1% ज्यादा!), जो उसके कुल आयात का एक-तिहाई से अधिक है।
  2. आर्थिक फायदे – अनिश्चितता में स्थिरता:
    • सस्ता रूसी तेल खरीदना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद है।
    • यह वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर करने में मदद करता है (याद कीजिए 2022 में $137 प्रति बैरल का उछाल!)।
    • वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के इस दौर में यह खरीदारी भारत को आर्थिक तूफान से बचाने में मददगार साबित हो रही है।
  3. रणनीतिक स्वायत्तता और रूस से पुराने रिश्ते – “हम किसी के आगे नहीं झुकेंगे”:
    • भारत की विदेश नीति की बुनियाद है “रणनीतिक स्वायत्तता” – अपने हित खुद तय करना।
    • रूस के साथ दशकों पुराने मजबूत संबंध हैं, खासकर ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में (रूस प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है)।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल का हालिया रूस दौरा और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के आगामी दौरे से यह संबंध और मजबूत होता दिखता है।
    • विशेषज्ञ (जैसे ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के डीन श्रीराम चौलिया) कहते हैं: “भारत का नजरिया है कि यह मुद्दा समग्र रिश्ते को प्रभावित नहीं करेगा, और हमें किसी के आगे झुकने की जरूरत नहीं है।”
  4. कथित पक्षपात (Double Standards) – “अमेरिका-यूरोप भी तो खरीद रहे हैं!”:
    • भारत का विदेश मंत्रालय अमेरिकी आलोचना को “अनुचित और अविवेकपूर्ण” बताता है।
    • भारत का तर्क है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ भी रूस से भारी मात्रा में सामान खरीद रहे हैं:
      • यूरोपीय संघ (ईयू): 2024 में रूस से 67.5 अरब यूरो का सामान आयात किया, जिसमें 1.65 करोड़ मीट्रिक टन LNG (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) भी शामिल है।
      • अमेरिका: रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड (परमाणु ईंधन के लिए), पैलेडियम (गाड़ियों के कैटेलिटिक कन्वर्टर्स में), खाद और रसायनों का आयात जारी है।
    • भारत याद दिलाता है कि यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक बाजार स्थिर करने के लिए शुरुआत में अमेरिका ने ही रूसी तेल खरीदने को प्रोत्साहित किया था!
  5. वैश्विक अनिश्चितता में देशहित प्राथमिक – मोदी का स्पष्ट संदेश:
    • प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक रैली में कहा था: “आज, विश्व अर्थव्यवस्था कई आशंकाओं से गुजर रही है, अस्थिरता का माहौल है। ऐसी स्थिति में, दुनिया के देश अपने-अपने हितों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।”
    • यह बयान साफ करता है कि वैश्विक उथल-पुथल के दौर में भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है।

⚖️ तनाव और भविष्य: क्या होगा आगे?

  • यह विवाद अमेरिका-भारत संबंधों में नया निचला स्तर दर्शाता है।
  • ट्रंप का आरोप: भारत का रूसी तेल खरीदना यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित कर रहा है।
  • मोदी का जवाब: भारत अपने राष्ट्रीय हितों और स्वायत्तता की रक्षा करेगा।
  • घरेलू दबाव: मोदी सरकार पर विपक्षी हमले भी हो रहे हैं, जो ट्रंप से उनके रिश्ते की वजह से देश को नुकसान होने का आरोप लगा रहे हैं।

हालांकि, राहत की एक किरण भी है:

  • अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि चीन के विरुद्ध रणनीतिक साझेदारी और व्यापक आर्थिक संबंधों के कारण दोनों देश इस विवाद को बढ़ाने से बचेंगे।
  • भारतीय विशेषज्ञों का आकलन है कि ट्रंप यह टैरिफ धमकी व्यापार वार्ता में दबाव बनाने के लिए दे रहे हैं। एक बार समझौता हो जाने पर यह मुद्दा शांत हो सकता है।

📌 निष्कर्ष: राष्ट्रहित बनाम वैश्विक दबाव

प्रधानमंत्री मोदी का रूसी तेल खरीदारी जारी रखने का फैसला सिर्फ एक व्यापारिक मुद्दा नहीं है। यह एक सोची-समझी रणनीति है, जो भारत की विशाल ऊर्जा जरूरतों, आर्थिक स्थिरता के लिए सस्ते तेल की अनिवार्यता, दशकों पुराने रणनीतिक रिश्तों और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में “दोहरे मापदंडों” के प्रति स्पष्ट असहमति पर आधारित है। वैश्विक अनिश्चितता के इस दौर में भारत साफ संदेश दे रहा है: “हमारा राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है।”

अब आपकी बारी: क्या आपको लगता है कि भारत का यह रुख सही है? अमेरिका के साथ यह तनाव चीन को फायदा पहुंचा सकता है?

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