उत्तरकाशी, उत्तराखंड। मानसून की भयावहता एक बार फिर उत्तराखंड के लिए तबाही लेकर आई है। मंगलवार, 5 अगस्त 2025 करीब 13:50 बजे उत्तरकाशी जिले में आई अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) ने भारी तबाही मचाई है। खीर गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में हुई बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) की घटना के कारण आई इस भीषण बाढ़ और मलबे के हिमस्खलन (डेब्रीस स्लाइड) ने धराली और हर्षिल जैसे गाँवों को तहस-नहस कर दिया है।
तात्कालिक स्थिति और नुकसान:
- मानवीय क्षति: दुखद रूप से अब तक 5 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि 100 से अधिक लोग लापता हैं। इनमें धराली गाँव के 50 से ज्यादा निवासी और हर्षिल में तैनात कम से कम 11 सेना के जवान शामिल हैं। लापता लोगों का सही-सही आँकड़ा बचाव कार्यों की प्रगति और दुर्गम इलाके के कारण अभी अस्थिर है।
- संपत्ति का विनाश: बाढ़ की भयानक ताकत ने धराली और हर्षिल गाँवों में कई घरों, अपार्टमेंट ब्लॉकों, दुकानों और लगभग एक दर्जन होटलों को पूरी तरह बहा दिया या ध्वस्त कर दिया है। मलबे और कीचड़ ने पूरे इलाके को त्रासदी की तस्वीर में बदल दिया है।
- यातायात व्यवधान: इस आपदा का एक गंभीर प्रभाव गंगोत्री धाम की यात्रा पर पड़ा है। बाढ़ और भूस्खलन ने गंगोत्री तीर्थ स्थल को जोड़ने वाली सड़क को पूरी तरह काट दिया है, जिससे यह क्षेत्र दुनिया से अलग-थलग हो गया है। हर्षिल में जल स्तर के बढ़ने से भी खतरा बना हुआ है।
बचाव अभियान: चुनौतियाँ और प्रयास:
राज्य और केंद्र सरकार ने तुरंत बचाव कार्य शुरू कर दिए हैं, लेकिन स्थिति अत्यंत चुनौतीपूर्ण है।
- बचाव दल: राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ), राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) और भारतीय सेना की 150 जवानों की टुकड़ी मलबे में फंसे लोगों को बचाने में जुटी हुई है।
- हवाई सहायता: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने खोज और बचाव कार्यों में मदद के लिए 3 हेलिकॉप्टरों की तत्काल मांग की है।
- सफलता और चुनौतियाँ: अब तक लगभग 20 लोगों को सुरक्षित बचाया जा चुका है। हालाँकि, लगातार जारी भारी बारिश, बह गई सड़कें, खतरे के निशान से ऊपर बहती नदियाँ और भूस्खलन का निरंतर खतरा बचाव कार्यों में बड़ी बाधा बने हुए हैं। कई इलाकों तक पहुँचना असंभव हो गया है।
शीर्ष नेतृत्व की प्रतिक्रिया:
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह लगातार स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और अधिकारियों से समन्वय बनाए हुए हैं। पीएम मोदी ने जान गंवाने वालों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा है कि देश इस दुख की घड़ी में उत्तराखंड के साथ खड़ा है।
- उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि बचाव दल “युद्ध स्तर” पर काम कर रहे हैं।
- केंद्रीय मंत्री संजय सेठ ने स्थिति को “गंभीर” बताया है।
ऐतिहासिक एवं पर्यावरणीय संदर्भ: एक दुखद पैटर्न:
यह घटना हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते प्राकृतिक आपदाओं के दुखद चलन का हिस्सा है, जिसके पीछे जलवायु परिवर्तन और अवैज्ञानिक विकास प्रमुख कारण हैं।
- 2013 की केदारनाथ त्रासदी: इसी राज्य में हुई बादल फटने और बाढ़ ने 6,000 से अधिक लोगों की जान ले ली थी और 4,500 गाँव प्रभावित हुए थे।
- 2021 चमोली ग्लेशियर फटना: नंदा देवी ग्लेशियर के फटने से आई बाढ़ में 200 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी।
- जलवायु चेतावनी: संयुक्त राष्ट्र की विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की 2024 की रिपोर्ट चेतावनी देती है कि जलवायु संकट के कारण भारी बाढ़ और सूखे जैसी घटनाएँ और तीव्र होंगी। जलवायु विशेषज्ञ हरजीत सिंह (सतत संपदा जलवायु फाउंडेशन) स्पष्ट रूप से इन आपदाओं को ग्लोबल वार्मिंग और अनियोजित विकास का परिणाम बता रहे हैं।
- ग्लेशियल झीलों का खतरा: अंतर्राष्ट्रीय समेकित पर्वतीय विकास केंद्र (आईसीआईएमओडी) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय क्षेत्र की लगभग 2,000 ग्लेशियल झीलों में से 200 के ऊफनने का खतरा है। यह मानसून के दौरान इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को दर्शाता है।
क्यों प्रासंगिक है यह त्रासदी?
उत्तराखंड का यह हादसा पूरे हिमालयी क्षेत्र में जलवायु संकट के बढ़ते प्रभाव का एक गंभीर संकेत है। हाल ही में पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी बाढ़ और भूस्खलन से 300 से अधिक लोगों की मौत हुई है। लुवेन विश्वविद्यालय, बेल्जियम के इमरजेंसी इवेंट्स डेटाबेस के अनुसार, एशिया में सिर्फ 2024 में ही 167 प्राकृतिक आपदाएँ दर्ज की गई हैं, जिनसे 24 अरब पाउंड से अधिक का नुकसान हुआ है। ये आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि जलवायु परिवर्तन अब एक स्थानीय नहीं, बल्कि वैश्विक संकट है जिसका सामना पूरा एशिया कर रहा है।
आगे की राह:
उत्तराखंड के लोग इस समय भारी दुख और अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं। जबकि बचाव दल अपनी पूरी ताकत से लापता लोगों को खोजने में जुटे हैं, यह त्रासदी एक बार फिर हमारे सामने कुछ गंभीर सवाल खड़े करती है:
- हिमालय जैसे संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र में विकास की गति और पद्धति कैसी हो?
- जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से निपटने के लिए हमारी आपदा तैयारियाँ कितनी मजबूत हैं?
- क्या हम पहाड़ों की भाषा समझ पा रहे हैं, या फिर बार-बार आने वाली ऐसी तबाहियाँ हमारी अनदेखी की कीमत हैं?
धराली और हर्षिल के लोगों, और पूरे उत्तराखंड के साथ हमारी पूरी संवेदना है। हम बचावकर्मियों के साहस और समर्पण की सराहना करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि जितने भी लोग लापता हैं, वे सुरक्षित मिलें। यह घटना न सिर्फ एक राज्य, बल्कि पूरे देश और दुनिया के लिए जलवायु कार्रवाई की तत्काल जरूरत की ओर इशारा करती है।
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