नई दिल्ली, 4 अगस्त 2025 – सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को उनके उस बयान के लिए कड़ी फटकार लगाई, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है। मानहानि मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सवाल किया, “आपको कैसे पता कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प ली? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय दस्तावेज हैं?” जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा, “एक सच्चा भारतीय ऐसी बातें नहीं कहेगा, खासकर जब सीमा पर तनाव हो।”
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद राहुल गांधी के 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राजस्थान में दिए गए बयान से शुरू हुआ। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था, “लोग भारत जोड़ो यात्रा, अशोक गहलोत, सचिन पायलट आदि के बारे में सवाल पूछेंगे, लेकिन कोई यह नहीं पूछेगा कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया, 20 भारतीय सैनिकों को मारा और अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों को पीटा। भारतीय प्रेस इस बारे में सवाल नहीं पूछता। क्या यह सच नहीं है?” यह बयान 2020 के गलवान घाटी संघर्ष और अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में कथित चीनी घुसपैठ के संदर्भ में था।
इस बयान के आधार पर लखनऊ की एक विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट में उदय शंकर श्रीवास्तव ने मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल के बयान ने भारतीय सेना की छवि को धूमिल किया और यह राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है। फरवरी 2025 में लखनऊ कोर्ट ने राहुल को समन जारी किया था। इसके खिलाफ राहुल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें दावा किया कि शिकायत राजनीति से प्रेरित है और उनके बोलने की आजादी पर अंकुश लगाया जा रहा है। हालांकि, 29 मई 2025 को हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि बोलने की आजादी में सेना जैसी संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने की छूट शामिल नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
राहुल गांधी ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की। 4 अगस्त 2025 को हुई सुनवाई में कोर्ट ने लखनऊ की निचली अदालत में चल रही मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगा दी और उत्तर प्रदेश सरकार व शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया। इस फैसले ने राहुल को अस्थायी राहत दी।
हालांकि, कोर्ट ने उनके बयान पर कड़ा रुख अपनाया। जस्टिस दत्ता ने राहुल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा, “आप विपक्ष के नेता हैं। आपने यह मुद्दा संसद में क्यों नहीं उठाया? सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर ऐसी बातें कहना उचित नहीं है।” कोर्ट ने जोर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दों को जिम्मेदारी के साथ संसद में उठाना चाहिए।
सिंघवी ने बचाव में कहा कि अगर विपक्षी नेता सार्वजनिक मंचों पर मुद्दे नहीं उठा सकते, तो यह लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि राहुल के बयान प्रेस में पहले से प्रकाशित जानकारी पर आधारित थे। कोर्ट ने इस पर असहमति जताते हुए कहा कि ऐसे दावों के लिए ठोस सबूत जरूरी हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस मामले ने राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा की हैं। बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीया ने एक्स पर पोस्ट करते हुए राहुल को “चीन गुरु” कहकर तंज कसा और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके गैर-जिम्मेदाराना बयानों के लिए बार-बार फटकार लगाई है। दूसरी ओर, कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा, “राहुल गांधी मोदी सरकार के खिलाफ बेबाक आवाज हैं और कांग्रेस को उन पर गर्व है।”
भविष्य की दिशा
सुप्रीम कोर्ट का लखनऊ कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने का फैसला राहुल गांधी के लिए अस्थायी राहत है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी होने से मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। कोर्ट की टिप्पणियां यह दर्शाती हैं कि प्रभावशाली पदों पर बैठे लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सावधानी बरतनी चाहिए।
आगामी सुनवाई में उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता के जवाबों की समीक्षा होगी, जिससे इस मामले के कानूनी और राजनीतिक परिणामों पर और स्पष्टता मिलेगी। यह मामला भारत के ध्रुवीकृत राजनीतिक परिदृश्य में चर्चा का केंद्र बना रहेगा।
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