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केरल की नर्स निमिषा प्रिया: यमन में मौत की सजा और जान बचाने की उम्मीद

16 जुलाई को यमन की अदालत ने केरल की नर्स निमिषा प्रिया को मौत की सजा सुनाई है। भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पीड़ित के परिवार ने माफी देने से इनकार कर दिया है। आखिर क्या है पूरा मामला? आइए जानते हैं।

कौन हैं निमिषा प्रिया?

निमिषा प्रिया केरल की रहने वाली हैं और पेशे से नर्स हैं। 2008 में वह नौकरी के सिलसिले में यमन गईं। 2015 में उन्होंने एक यमनी बिजनेसमैन तलाल अब्दुल मेहंदी के साथ मिलकर एक क्लीनिक खोला।

क्या हुआ था 2017 में?

मेहंदी ने निमिषा के साथ धोखाधड़ी की और उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया। इसके बाद 2017 में निमिषा ने मेहंदी को बेहोश करने की कोशिश की, लेकिन ओवरडोज के कारण उसकी मौत हो गई। घबराकर निमिषा और उनकी एक दोस्त ने लाश के टुकड़े करके मेहंदी के घर के टैंक में छुपा दिया।

निमिषा ने कबूल किया कि यह एक दुर्घटना थी, लेकिन यमन की अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुना दी।

1. क्या निमिषा वाकई “गुनहगार” हैं, या फिर वह भी एक शिकार थीं?

  • निमिषा का दावा है कि मेहंदी ने उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया था।
  • उनका पासपोर्ट छीनकर उन्हें यमन में फंसा दिया गया था, जिससे वह भारत वापस नहीं आ सकती थीं।
  • कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, मेहंदी ने उन पर जादू-टोना (witchcraft) का आरोप लगाकर स्थानीय लोगों को उनके खिलाफ भड़काया था।

2. यमन की न्याय प्रणाली पर सवाल

  • यमन में शरिया कानून लागू है, जहां हत्या के मामलों में “किस्सास” (बदले की सजा) का प्रावधान है।
  • निमिषा को एकतरफा ट्रायल के बाद सजा सुनाई गई, जहां उन्हें पूर्ण कानूनी सहायता नहीं मिली।
  • भारत सरकार ने कई बार कूटनीतिक हस्तक्षेप करने की कोशिश की, लेकिन यमन की अशांत राजनीतिक स्थिति के कारण मामला जटिल हो गया।

3. पीड़ित का परिवार क्यों नहीं दे रहा माफी?

  • यमन की संस्कृति में “खून का बदला खून” एक गहरा सामाजिक मान्यता है।
  • मेहंदी के परिवार का कहना है कि निमिषा ने जानबूझकर हत्या की थी, इसलिए वे दिया (खून का पैसा) लेने को तैयार नहीं हैं।
  • कुछ सूत्रों का दावा है कि परिवार राजनीतिक दबाव में भी हो सकता है, क्योंकि मेहंदी का यमन के प्रभावशाली लोगों से कनेक्शन था।

क्या अब भी कोई उम्मीद बची है?

  • शरिया कानून के तहत, अगर पीड़ित का परिवार माफी दे दे, तो सजा रोकी जा सकती है।
  • पिछले 5 साल से निमिषा के वकील मेहंदी के परिवार से बात कर रहे हैं, लेकिन वे माफी देने को तैयार नहीं हैं।
  • 2020 में “सेव निमिषा प्रिया काउंसिल” नाम से एक मुहिम शुरू की गई, जिसने 8.3 करोड़ रुपये का इंतजाम किया, लेकिन परिवार के इनकार के कारण यह रकम काम नहीं आ रही।
  • 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है, लेकिन उसके बाद निमिषा के पास सिर्फ 48 घंटे बचेंगे।

सवाल:

अगर निमिषा की जगह कोई यमनी महिला होती, तो क्या सजा इतनी कठोर होती?

क्या हो सकता है आगे?

लेकिन समय बहुत कम है और मेहंदी का परिवार अड़ा हुआ है।

अगर मेहंदी का भाई माफी दे दे, तो निमिषा की जान बच सकती है।

भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय दबाव बना सकती है या कूटनीतिक रास्ता निकाल सकती है।

अगर 16 जुलाई तक कोई समाधान नहीं निकला, तो निमिषा को फांसी दी जा सकती है।

निष्कर्ष: क्या यह सिर्फ निमिषा की लड़ाई है?

यह मामला सिर्फ एक नर्स की जिंदगी का सवाल नहीं, बल्कि हजारों प्रवासी भारतीय महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा है। अगर निमिषा को फांसी होती है, तो यह एक खतरनाक मिसाल बनेगी कि विदेशों में फंसे भारतीयों को न्याय नहीं मिल पाता।

आपकी राय क्या है?

  • क्या निमिषा को माफ किया जाना चाहिए?
  • क्या भारत सरकार को और कड़े कदम उठाने चाहिए?

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