कभी एक-दूसरे के साथ व्यापार के मंच पर साझेदार, तो कभी सीमा पर कट्टर प्रतिद्वंद्वी — भारत और चीन का रिश्ता हमेशा उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद तो यह रिश्ता लगभग जम ही गया था। लेकिन अब, एक अप्रत्याशित कारण से इसमें फिर से गर्माहट आती दिख रही है — और वह कारण हैं, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप।
तनाव से तालमेल की ओर
गलवान घाटी में हुए खूनी टकराव के बाद सीधी उड़ानें रुक गईं, सीमा व्यापार ठप हो गया, और उच्च-स्तरीय मुलाकातें बंद हो गईं। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है।
- सीधी उड़ानें जल्द बहाल हो सकती हैं।
- कैलाश मानसरोवर यात्रा दोबारा शुरू हो चुकी है।
- भारतीय डीज़ल की खेप तीन साल बाद पहली बार चीन जा रही है।
- पर्यटक वीज़ा चीनियों के लिए फिर से खुल गए हैं।
पिछले साल दोनों देशों ने सीमा पर गश्ती और disengagement का समझौता भी किया, जिससे भारतीय चरवाहे फिर से पुराने इलाकों में जा पा रहे हैं।
ट्रंप फैक्टर – विरोध में मिली समान भाषा
ट्रंप की व्यापार नीति ने भारत और चीन, दोनों को एक साझा परेशानी दे दी है।
- भारत पर 50% टैरिफ
- चीन को राहत, ट्रिपल डिजिट ड्यूटी से बचा लिया
दिल्ली के लिए यह असंतुलन चिंताजनक है। साथ ही, ट्रंप के पाकिस्तान के साथ नज़दीकी बढ़ाने की खबरें भारत को सतर्क कर रही हैं। बीजिंग के लिए भी यह संकेत है कि अमेरिका उनके चीन-पाक आर्थिक गलियारे (CPEC) पर चोट करना चाहता है।
यहीं से दोनों देशों की भाषा मिलती दिखी।
- भारत ने अमेरिकी रवैये को “अनुचित” कहा और रूस से तेल खरीद पर दोहरे मानदंड का विरोध किया।
- चीन ने भी ऊर्जा सुरक्षा की बात की और अमेरिका को “ज़बरदस्ती से न चलने” की चेतावनी दी।
चीन के सरकारी मीडिया ने तो भारत की रूस से तेल खरीद की तारीफ़ करते हुए इसे “स्वतंत्र विदेश नीति” का उदाहरण बताया।
साझा हित, लेकिन गहरे मतभेद
भारत के लिए यह नज़दीकी मतलब है —
- अमेरिकी दबाव का तोड़
- सीमा पर तनाव को कम करने का मौका
चीन के लिए यह है —
- क्वाड (Quad) के एक सदस्य को कुछ नरम करना
- एक ही समय में दो बड़े एशियाई देशों से टकराव से बचना
बीजिंग ने तो यहां तक कर दिया कि अमेरिकी दबाव के बीच भारत की सार्वभौमिकता का समर्थन किया — जो एक दुर्लभ कदम है।
लेकिन चुनौतियाँ अब भी वही हैं:
- LAC विवाद पूरी तरह हल नहीं
- चीन-पाक साझेदारी अटूट, जिसमें परमाणु और सैन्य सहयोग शामिल है
- यारलुंग त्संगपो मेगा डैम और शिनजियांग–तिब्बत रेलवे जैसे प्रोजेक्ट दिल्ली की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ाते हैं
थोड़ी देर की दोस्ती या स्थायी बदलाव?
यह ज्यादा एक रणनीतिक ब्रेक जैसा लगता है, न कि स्थायी सुलह। ट्रंप की नीतियों और वैश्विक अनिश्चितता ने दोनों को व्यावहारिक होने पर मजबूर किया है।
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब फिर से बात कर रहे हैं, व्यापार बहाल हो रहा है, और उड़ानें लौटने वाली हैं। लेकिन असली परीक्षा तब होगी, जब अगला विवाद — चाहे सीमा पर हो, इंडो-पैसिफिक में, या वॉशिंगटन में — दोनों को फिर से अपने पत्ते खोलने पर मजबूर कर देगा।
📌 निष्कर्ष:
आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में, “हिंदी-चीनी भाई-भाई” की गूंज फिर से सुनाई दे रही है। लेकिन सवाल वही है — क्या यह दोस्ती सिर्फ वक्ती है, या आने वाले सालों में यह एक नए एशियाई समीकरण की नींव रखेगी?
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