नेशनल डेस्क: दिल्ली यूनिवर्सिटी के आत्माराम सनातन धर्म कॉलेज की 20 वर्षीय छात्रा स्नेहा देबनाथ की रहस्यमयी मौत ने शहर को झकझोर दिया है। छह दिन पहले लापता हुई स्नेहा का शव गुरुवार को यमुना नदी में तैरता हुआ मिला। यह घटना एक बार फिर युवाओं पर बढ़ते मानसिक दबाव और सहायता प्रणालियों की कमी पर सवाल खड़े कर गई है।
आखिरी कॉल और गायब होने का रहस्य
7 जुलाई की सुबह 5:56 बजे स्नेहा ने अपनी मां को फोन कर बताया कि वह एक दोस्त को सराय रोहिल्ला स्टेशन छोड़ने जा रही है। इसके बाद उसका फोन बंद हो गया और वह गायब हो गई। परिवार ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। जांच में पता चला कि स्नेहा को कैब ड्राइवर ने सराय रोहिल्ला नहीं, बल्कि सिग्नेचर ब्रिज के पास उतारा था—एक ऐसा स्थान जहां पहले भी आत्महत्या के मामले सामने आ चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि ब्रिज के आसपास कोई कार्यशील सीसीटीवी कैमरा नहीं था, जिससे पुलिस के लिए सुराग जुटाना मुश्किल हो गया।
सुसाइड नोट में जाहिर हुई मनोदशा
स्नेहा के कमरे से मिले एक नोट में उसने लिखा था— “मैं खुद को नाकाम और बोझ समझती हूं… यह मेरा अपना फैसला है, किसी का दबाव नहीं।” हालांकि पुलिस संभावित साजिश को खारिज नहीं कर रही और हर कोण से जांच कर रही है।
खोज अभियान और शव की बरामदगी
9 जुलाई को पुलिस और एनडीआरएफ की टीम ने सिग्नेचर ब्रिज से लेकर यमुना नदी तक 7 किमी के दायरे में ऑपरेशन शुरू किया। चार दिन की मशक्कत के बाद गीता कॉलोनी फ्लाईओवर के पास उसका शव मिला।
समाज के सामने बड़े सवाल
- क्या शैक्षणिक दबाव और अकेलेपन ने स्नेहा को इस कदर हताश कर दिया?
- कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता की क्यों नहीं है पर्याप्त व्यवस्था?
- महिला सुरक्षा और सीसीटीवी निगरानी में ढिलाई क्यों?
इस घटना ने एक बार फिर युवाओं की भावनात्मक संवेदनशीलता और समाज की जिम्मेदारी पर चिंता जताई है। स्नेहा की मौत सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि एक सिस्टम की विफलता है जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
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