पिछले एक दशक में (2014 से अब तक) चीनी निवेशकों ने लगभग 30 ब्रिटिश निजी स्कूल खरीदे हैं। इन अधिग्रहणों के पीछे मुख्य रूप से आर्थिक और व्यावसायिक रणनीतियाँ रही हैं, लेकिन इसके साथ ही ब्रिटेन में संभावित राजनीतिक प्रभाव और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ भी सामने आई हैं। आइए जानते हैं इस पूरे मुद्दे की दोनों तस्वीरें।
अधिग्रहण के प्रमुख कारण
1. चीनी परिवारों की अंतरराष्ट्रीय शिक्षा की मांग
चीन में बढ़ती आय और पश्चिमी शिक्षा के प्रति आकर्षण ने ब्रिटिश स्कूलों की लोकप्रियता को बढ़ाया है।
- कई माता-पिता मानते हैं कि ब्रिटेन के बोर्डिंग स्कूल बेहतर शिक्षा, समग्र विकास और वैश्विक अवसरों के लिए तैयार करते हैं।
- इसी कारण निवेशक यूके स्कूलों को खरीदकर अधिक चीनी छात्रों को आकर्षित करना चाहते हैं और साथ ही इन ब्रांड्स को चीन में भी फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
2. व्यापार का विस्तार और अंतरराष्ट्रीयकरण
ब्राइट स्कॉलर, एक्सेस एजुकेशन, कन्फ्यूशियस इंटरनेशनल एजुकेशन ग्रुप जैसे बड़े चीनी शिक्षा समूह ब्रिटेन में तेजी से निवेश कर रहे हैं।
- इसका एक कारण चीन के घरेलू शिक्षा क्षेत्र पर बढ़ती सरकारी सख्ती है, जिससे कंपनियाँ बाहर विस्तार करना अधिक सुरक्षित और लाभकारी मान रही हैं।
- ब्रिटेन के स्थापित ब्रांड और शिक्षा संरचना इन कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में मदद करते हैं।
3. संकटग्रस्त स्कूलों की खरीद
कई अधिग्रहित स्कूल पहले से वित्तीय मुश्किलों में थे।
- कोविड-19 के बाद घटती छात्र संख्या और ब्रिटेन की नई नीतियों (जैसे लेबर सरकार द्वारा निजी स्कूल फीस पर VAT लगाना) ने इन्हें कमजोर बना दिया।
- चीनी निवेशकों ने इस मौके का फायदा उठाकर सस्ते दामों में इन्हें खरीदा और इन्हें अंतरराष्ट्रीय छात्रों, खासकर चीनी छात्रों के लिए आकर्षक बनाया।
👉 आंकड़ों के अनुसार, 2017 से 2020 के बीच ही 17 स्कूल खरीदे गए थे। हाल ही में 2023 में फिर से 5 नए सौदे हुए। इनमें कई ऐतिहासिक स्कूल भी शामिल हैं जैसे विसबेच ग्रामर (1379 में स्थापित) और देटफोर्ड ग्रामर (1566 में स्थापित)।
उठ रही चिंताएँ और आलोचनाएँ
हालाँकि निवेशक इसे सिर्फ व्यावसायिक पहल बताते हैं, लेकिन ब्रिटेन के राजनेता, विशेषज्ञ और मीडिया इसे सुरक्षा और वैचारिक खतरे के रूप में देख रहे हैं।
1. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) का प्रभाव
- कुछ ब्रिटिश अधिकारियों का मानना है कि ये अधिग्रहण सिर्फ बिज़नेस नहीं बल्कि चीन की “सॉफ्ट पावर” रणनीति का हिस्सा हैं।
- आशंका है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम पर अप्रत्यक्ष दबाव डाला जा सकता है, जैसे कि ताइवान या मानवाधिकार जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चुप्पी साधना।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा और नियमों की कमजोरियाँ
- कई सांसदों और थिंक टैंकों का कहना है कि ब्रिटेन ने चीन के खतरे को नजरअंदाज किया है।
- खास चिंता उन स्कूलों को लेकर है जो “चैरिटी स्टेटस” में आते हैं (लगभग 32%)—ऐसी संस्थाओं की बिक्री पर कानूनी व नैतिक सवाल खड़े हो रहे हैं।
3. ब्रिटिश मूल्यों और शिक्षा की गुणवत्ता पर असर
- ब्रिटिश स्कूलों को लोकतंत्र, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकार जैसे मूल्यों को बढ़ावा देना अनिवार्य है।
- लेकिन अधिग्रहण के बाद कुछ बदलाव (जैसे Malvern St James स्कूल का सह-शिक्षा मॉडल अपनाना ताकि ज्यादा विदेशी छात्र जुड़ सकें) इस बात को लेकर चिंता बढ़ाते हैं कि व्यावसायिक हित कहीं शिक्षा के मूल्यों पर भारी न पड़ जाएँ।
निष्कर्ष
चीनी कंपनियाँ इन सौदों को आर्थिक और व्यापारिक विस्तार के रूप में प्रस्तुत करती हैं, खासकर तब जब चीन के भीतर शिक्षा क्षेत्र पर सख्ती और ट्यूशन इंडस्ट्री पर प्रतिबंध लग चुका है। वहीं, ब्रिटिश मीडिया और राजनेता इन्हें सुरक्षा खतरे और राजनीतिक प्रभाव के रूप में देखते हैं।
स्पष्ट है कि यह रुझान केवल आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक भी है। अगर ब्रिटेन ने नियामक ढाँचे को और सख्त नहीं किया, तो आने वाले वर्षों में चीनी निवेशकों द्वारा और स्कूल खरीदे जाने की संभावना है।
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