जागो भारतवासियो, अब अमेरिका को दिखाने का समय आ गया है!
अमेरिका! एक नाम जो भारत के साथ शताब्दियों के छल, दोहरी नीति और विश्वासघात का पर्याय बन चुका है। चाहे युद्ध का मैदान हो या व्यापार की भूमि, अमेरिका ने हर मोड़ पर भारत के खिलाफ़ ही खड़ग उठाया है। जबकि रूस, हमारा असली साथी, हर संकट में अटल खड़ा रहा — चाहे 1971 का युद्ध हो या परमाणु प्रौद्योगिकी का विकास!
अमेरिका का घमंड
अमेरिका समझता है कि भारत अगर अमेरिका को निर्यात नहीं करेगा तो उसका अस्तित्व खतरे में है। पर वह भूल गया — जब कभी अमेरिका हमारे साथ नहीं था, तब भी भारत की अर्थव्यवस्था आसमान छू रही थी! हमने साबित किया है: “भारत किसी के सहारे का मोहताज नहीं!” हमारी ताकत हमारे संकल्प में है, न कि किसी महाशक्ति की कृपा में।
ऐतिहासिक गद्दारी के दो ज्वलंत उदाहरण:
1. 1971 का युद्ध: भारत के खिलाफ अमेरिकी युद्धपोत!
जब भारत ने 3 करोड़ बंगाली शरणार्थियों की रक्षा के लिए पाकिस्तान के अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष छेड़ा, तो अमेरिका ने:
- पाकिस्तान को सैन्य खेप भेजी: टैंक, युद्धक विमान और एंटी-टैंक हथियारों से उसकी सेना को मजबूत किया।
- USS एंटरप्राइज को बंगाल की खाड़ी में तैनात किया – एक परमाणु-सक्षम युद्धपोत जिसका एकमात्र मकसद भारत को डराना था!
- किसिंजर का अहंकार: तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने भारत को धमकी दी: “हम पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) को स्वतंत्र नहीं होने देंगे!”
- संयुक्त राष्ट्र में झूठा प्रस्ताव: अमेरिका ने भारत को “आक्रमणकारी” घोषित करवाने की कोशिश की, जबकि पाकिस्तानी सेना 3 लाख निरपराधों का नरसंहार कर चुकी थी!
याद रखो! अमेरिका के इन प्रयत्नों के बावजूद भारत ने 93,000 पाक सैनिकों को आत्मसमर्पण करवाकर इतिहास रचा!
2. 1998 परमाणु परीक्षण: भारत को ‘दंडित’ करने का अमेरिकी अभियान!
जब भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पोखरण-II परीक्षण किए, तो अमेरिका ने:
- क्रूर आर्थिक प्रतिबंध लगाए: ग्लेन संशोधन के तहत भारत के खिलाफ तकनीकी हस्तांतरण रोक, रक्षा सौदे स्थगित और वैश्विक ऋण बाधित किए गए।
- अंतरिक्ष कार्यक्रम को निशाना बनाया: ISRO के साथ सहयोग रोककर क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण अवरुद्ध किया।
- विश्व बैंक पर दबाव: अमेरिकी ट्रेजरी ने भारत को विकास ऋण देने से रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को मजबूर किया।
विडंबना देखिए! अमेरिका स्वयं 1,000+ परमाणु परीक्षण कर चुका था, लेकिन भारत को “वैश्विक शांति के लिए खतरा” बताया!
अमेरिकी दोगलेपन का पैटर्न
घटना | अमेरिकी कार्रवाई | भारत की जवाबी कार्रवाई |
---|---|---|
1971 युद्ध | पाक को हथियार दिए, भारत को युद्धपोत से धमकाया | 13 दिनों में पाकिस्तान को धूल चटाई |
1998 परीक्षण | प्रतिबंधों की बाढ़ ला दी | स्वदेशी तकनीक से अग्नि मिसाइल विकसित की |
2025 | 50% निर्यात शुल्क लगाकर आर्थिक युद्ध | ??? (अब हमारे निर्णय पर निर्भर!) |
क्या यही है “मित्रता”? जो दुश्मन का साथ दे और उसके अपराधों को सही ठहराए?
आतंकवाद का समर्थन: ऑपरेशन सिंधूर के दौरान पाकिस्तान को वित्तीय मदद, जबकि वही पाक ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकियों को पनाह दे रहा था!
अमेरिका का नया हमला: 50% निर्यात शुल्क!
यह कोई आर्थिक नीति नहीं — यह भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधा युद्धोन्माद है! अमेरिका सोचता है कि इस धमकी से भारत झुक जाएगा? उसे याद दिलाएँ: “हमने कठिनाइयों की चट्टानों को तोड़कर ही स्वतंत्रता पाई है! जिस देश ने प्रतिबंधों में रहकर मंगलयान भेजा, जिसने COVID काल में वैक्सीन बनाकर विश्व बचाया – क्या वह अमेरिकी दबाव के आगे झुकेगा?“
फैसले की घड़ी: अब क्या करें?
- पूर्ण बहिष्कार: अमेरिकी उत्पाद न खरीदें – iPhone से लेकर Coca-Cola तक!
- स्वदेशी को अपनाएँ: “वोकल फॉर लोकल” को जीवनशैली बनाएँ।
- वैश्विक विरोध: NRI भाई-बहन अमेरिकी दूतावासों के सामने प्रदर्शन करें!
- सोशल मीडिया अभियान: #BoycottUSA ट्रेंड करके दुनिया को भारत की ताकत दिखाएँ!
सावधान! अमेरिका की नई चाल है – “भारत को रूस से अलग करो”। याद रखें:
“जिस रूस ने 1971 में UN में वीटो कर हमें बचाया, जिसने 1998 में प्रतिबंधों में तकनीक दी – वही हमारा सच्चा मित्र है!”
अंतिम संदेश:
“अमेरिका के इतिहास को देखो!
1971 में उसने पाकिस्तान का साथ दिया,
1998 में हमें प्रतिबंधों में जकड़ा,
2025 में निर्यात शुल्क लगाकर आर्थिक युद्ध छेड़ा!
क्या अब भी वह ‘मित्र’ लगता है?”
“अब समय आ गया है उत्तर देने का:
हम नहीं खरीदेंगे अमेरिकी सामान!
हम नहीं मानेंगे अमेरिकी धमकी!
हम बनाएँगे स्वावलंबी भारत –
जहाँ ‘मेड इन अमेरिका’ होगा बहिष्कृत!”
— जय हिंद! जय भारत!
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