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अमेरिका का दावा, भारत और पाकिस्तान पर हर दिन नज़र रखता है। जानिए क्यों

वाशिंगटन ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण स्थिति पर उसकी नजरें लगातार बनी हुई हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने हाल के साक्षात्कारों में खुलासा किया कि दोनों परमाणु-संपन्न पड़ोसियों के बीच युद्धविराम की नाजुकता और तेजी से बढ़ सकने वाले तनाव के मद्देनजर अमेरिका हर एक दिन इस स्थिति की निगरानी करता है।

क्यों जताई यह चिंता?

रुबियो ने एनबीसी न्यूज के साथ बातचीत में युद्धविरामों (सीजफायर) को बनाए रखने की चुनौती पर बात करते हुए स्पष्ट किया:

“युद्धविरामों की एक बड़ी जटिलता उन्हें कायम रखना है, जो बेहद मुश्किल है। हर एक दिन, हम देख रहे हैं कि पाकिस्तान और भारत के बीच क्या हो रहा है।”

फॉक्स बिजनेस को दिए गए एक अन्य साक्षात्कार में उन्होंने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे को दोहराया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका भारत-पाकिस्तान सहित दुनिया भर के संघर्षों (जैसे कंबोडिया, थाईलैंड, रवांडा, कांगो) को सुलझाने में लगा है।

अमेरिका की हरदिन निगरानी के पीछे कारण

रुबियो ने भारत-पाकिस्तान जैसी उच्च-दांव वाली प्रतिद्वंद्विता में युद्धविराम की नाजुकता को प्रमुख वजह बताया:

  1. युद्धविरामों की नाजुकता: रुबियो के मुताबिक, युद्धविराम “बहुत जल्दी टूट सकते हैं”। इन्हें स्थिर बनाए रखने के लिए लगातार सतर्कता जरूरी है। यह चिंता दोनों देशों के बीच अतीत के आवर्ती संघर्षों और इस तथ्य से उपजी है कि छोटी सी घटना भी बड़े टकराव का रूप ले सकती है।
  2. वृद्धि का जोखिम, खासकर परमाणु खतरा: अमेरिका की सबसे बड़ी चिंता दोनों देशों के परमाणु हथियारों के जखीरे की वजह से संघर्ष के परमाणु स्तर तक पहुंचने का खतरा है। राष्ट्रपति ट्रंप ने बार-बार दावा किया है कि अमेरिकी हस्तक्षेप ने 2025 की शुरुआत में एक संभावित परमाणु संकट को टाल दिया था। उनका कहना है: “भारत को देखो। भारत और पाकिस्तान को देखो। वे पहले ही हवाई जहाज मार गिरा रहे थे, और शायद वह परमाणु (युद्ध) हो सकता था।” यह उस सैन्य संघर्ष की ओर इशारा है जो मई 2025 में पाकिस्तान द्वारा भारी नुकसान के बाद युद्धविराम की पेशकश के साथ समाप्त हुआ, जिसमें अमेरिका ने मध्यस्थता का दावा किया।
  3. भू-राजनीतिक और व्यापारिक प्रोत्साहन: अमेरिका ने अपनी भागीदारी को व्यापक प्रोत्साहनों से जोड़ा है, जैसे बढ़े हुए व्यापार के अवसर। ट्रंप ने सुझाव दिया था कि अगर दोनों देश शत्रुता बंद करते हैं तो अमेरिका उनके साथ “बहुत सारा व्यापार” करेगा। इसके बाद पाकिस्तान ने अपने सेना प्रमुख आसिम मुनिर की अमेरिकी यात्रा के बाद अमेरिका के साथ तेल समझौते जैसे सौदों को आगे बढ़ाया है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और हालिया तनाव

भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता की जड़ें गहरी हैं, जिसमें कई युद्ध (1947, 1965, 1971, 1999) और कश्मीर को लेकर चल रहा विवाद शामिल है। 2025 की शुरुआत में हाल ही में तनाव भड़का, जिसमें हवाई मुठभेड़ें और सीमा पार हमले हुए। ट्रंप ने इस घटना का जिक्र लगभग 40 बार अपनी सरकार की शांति स्थापना के उदाहरण के तौर पर किया है। पाकिस्तान ने मई में भारी सैन्य नुकसान के बाद युद्धविराम की मांग की, और अमेरिका ने इसे ब्रोकर करने में भूमिका का दावा किया – हालांकि भारत ने किसी भी तीसरे पक्ष की भागीदारी से स्पष्ट इनकार किया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि किसी भी विदेशी नेता ने भारत पर “ऑपरेशन सिंदूर” को समाप्त करने का दबाव नहीं डाला और युद्धविराम व्यापारिक वादों से जुड़ा नहीं था।

निष्कर्ष: स्थिरता की चाहत, पर संप्रभुता का सवाल

अमेरिका की इस दैनिक निगरानी के पीछे दक्षिण एशियाई स्थिरता में उसके व्यापक रणनीतिक हित, परमाणु प्रसार के जोखिम को रोकने की चिंता और इस अशांत क्षेत्र में आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की इच्छा छिपी है। हालांकि, जहां अमेरिका अपनी भूमिका को निर्णायक बताता है, वहीं भारत का इनकार संप्रभुता और मध्यस्थता पर भिन्न कथाओं को रेखांकित करता है। साफ है कि दोनों परमाणु शक्तियों के बीच शांति और स्थिरता वैश्विक सुरक्षा के लिए अहम है, लेकिन इसका रास्ता बाहरी दखल से ज्यादा सीधी बातचीत और विश्वास निर्माण से ही निकलेगा। अमेरिका की सतर्क नजर इस जटिल समीकरण की गंभीरता को दर्शाती है।

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