31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चीन के तिआनजिन शहर में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन द्वारा किया गया गर्मजोशीपूर्ण स्वागत एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक संकेत बनकर उभरा है। यह दौरा न केवल प्रधानमंत्री मोदी का 2019 के बाद पहला चीन दौरा है, बल्कि 2020 के गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ के पिघलने के संकेत भी देता है।
🔹 SCO सम्मेलन का महत्व और तिआनजिन का मेजबानी करना
SCO एक प्रमुख क्षेत्रीय संगठन है जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, उज्बेकिस्तान, कजाखस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और बेलारूस सदस्य हैं। इस वर्ष का शिखर सम्मेलन SCO के इतिहास का सबसे बड़ा सम्मेलन माना जा रहा है जिसमें 20 से अधिक देशों के नेता और 10 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
चीन की ओर से इसे “एकजुटता, मित्रता और सार्थक परिणामों का मंच” बताया गया है। यह भाषा इस बात का संकेत है कि चीन इस सम्मेलन को भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के अवसर के रूप में देख रहा है।
🔹 भारत-चीन संबंध: गलवान के बाद बदलती दिशा
2020 में गलवान घाटी में हुए खूनी संघर्ष के बाद भारत-चीन संबंधों में गहरी दरार आ गई थी। लेकिन अक्टूबर 2024 में LAC गतिरोध के अंत और ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात ने रिश्तों में नई गर्माहट पैदा की।
अब, तिआनजिन सम्मेलन में दोनों नेताओं की संभव द्विपक्षीय बैठक की उम्मीद है, जिसमें सीमा पर तनाव कम करने, सीधी उड़ानों को बहाल करने, सीमावर्ती व्यापार को फिर से शुरू करने, और जन-संपर्क बढ़ाने जैसे मुद्दों पर चर्चा हो सकती है।
🔹 चीनी बयान: रिश्तों में सकारात्मक बदलाव का संकेत
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने 8 अगस्त को कहा कि यह सम्मेलन “एकजुटता, मित्रता और फलदायी परिणामों का अवसर” है। यह बयान इस ओर इशारा करता है कि बीजिंग, भारत के साथ अपने संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जाना चाहता है।
हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की बीजिंग यात्रा और वहां राष्ट्रपति शी से उनकी मुलाकात भी इस दिशा में तैयारियों का हिस्सा मानी जा रही है।
🔹 भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य और भारत की रणनीतिक गणनाएं
SCO शिखर सम्मेलन का आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब भारत पर पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका का दबाव लगातार बढ़ रहा है, विशेषकर रूस से तेल खरीद को लेकर। अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाए जाने और पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा BRICS पर की गई आलोचना के बीच भारत के लिए चीन के साथ संबंध सुधारना एक रणनीतिक संतुलन का प्रयास हो सकता है।
SCO भारत को एक ऐसा मंच भी प्रदान करता है जहां वह रूस, ईरान और मध्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखते हुए बहुपक्षीय कूटनीति को आगे बढ़ा सकता है।
🔹 बाधाएं भी हैं—पाकिस्तान, आतंकवाद और क्षेत्रीय विवाद
हालांकि सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं, लेकिन कुछ पुराने विवाद अब भी चुनौती बने हुए हैं। चीन द्वारा SCO दस्तावेजों में बलूचिस्तान का जिक्र और पाकिस्तान का समर्थन, भारत के लिए चिंता का विषय हैं। भारत के लिए सीमा विवाद, आतंकवाद पर एकमत रवैया, और प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच जैसे मुद्दे आगे की बातचीत में अहम रहेंगे।
🔸 संक्षिप्त विश्लेषण तालिका
पहलू | विवरण |
---|---|
सम्मेलन | SCO शिखर सम्मेलन, तिआनजिन, चीन (31 अगस्त – 1 सितंबर 2025) |
उपस्थित देश | 20+ देशों के नेता, 10 SCO सदस्य, 10 अंतरराष्ट्रीय संगठन |
प्रधानमंत्री मोदी की पिछली चीन यात्रा | 2019 |
हाल के घटनाक्रम | अक्टूबर 2024 में LAC गतिरोध समाप्त, मोदी-शी भेंट (कज़ान, ब्रिक्स) |
संभावित बातचीत के मुद्दे | सीमा तनाव कम करना, सीधी उड़ानें, सीमा व्यापार, जनसंपर्क |
भूराजनीतिक संदर्भ | अमेरिकी दबाव, रूस से तेल खरीद, ट्रंप की BRICS आलोचना |
संभावित परिणाम | SCO में सहयोग बढ़ना, भारत-चीन संबंधों में सुधार की उम्मीद |
📝 निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा और SCO सम्मेलन में भागीदारी, भारत-चीन संबंधों में एक नई शुरुआत का संकेत दे सकती है। हालांकि चुनौतियाँ मौजूद हैं—जैसे सीमा विवाद, पाकिस्तान पर मतभेद और आतंकवाद का मुद्दा—लेकिन इस सम्मेलन को एक रणनीतिक अवसर के रूप में देखा जा रहा है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मोदी और शी जिनपिंग के बीच संभावित बैठक दोनों देशों को स्थायी संवाद और स्थायित्व की ओर ले जा सकती है। आने वाले समय में SCO सम्मेलन के निर्णय और घोषणाएं, भारत-चीन रिश्तों की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
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