अमेरिका से रक्षा सौदों की भारत की बड़ी योजनाएं अचानक ठप पड़ गई हैं। विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, यह कदम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय सामानों पर 25% अतिरिक्त टैरिफ़ (कुल 50% शुल्क) लगाने की कार्रवाई का जवाब है। यह शुल्क भारत के रूसी तेल खरीदने को लेकर लगाया गया, जिसे ट्रंप ने यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित करने वाला बताया।
कौन से सौदे प्रभावित?
- स्ट्राइकर लड़ाकू वाहन: जनरल डायनेमिक्स लैंड सिस्टम्स द्वारा निर्मित।
- जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइलें: रेथियॉन और लॉकहीड मार्टिन की ये घातक मिसाइलें भी चर्चा में थीं।
- बोइंग P-8I समुद्री गश्ती विमान: सबसे बड़ा झटका! भारतीय नौसेना के लिए 6 विमानों और सपोर्ट सिस्टम का यह 3.6 अरब डॉलर का डील अत्यंत उन्नत चरण में था, जिसे अब रोक दिया गया है।
रक्षा मंत्री की यात्रा रद्द – स्पष्ट संकेत!
इस असंतोष का सबसे ठोस संकेत है रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की आगामी वाशिंगटन यात्रा का रद्द होना। यह यात्रा कुछ खरीदों की घोषणा के लिए ही थी। हालांकि आधिकारिक तौर पर लिखित आदेश नहीं हैं, पर सभी बातचीत “अभी के लिए ठप” है। अधिकारी कहते हैं: “फिलहाल कोई आगे बढ़त नहीं है, हालांकि हालात बदलने पर रुख बदला जा सकता है।”
पीछे का बड़ा खेल: व्यापार, रूस और चीन
- व्यापार युद्ध का दबाव: ट्रंप के टैरिफ़ से भारत के अमेरिका को होने वाले 66 अरब डॉलर के निर्यात में से 87% प्रभावित हो सकते हैं! दवाएं और ऑटो पार्ट्स सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र हैं।
- रूसी तेल की दुविधा: भारत ने स्पष्ट किया है कि उसे सस्ता ऊर्जा स्रोत चाहिए। वह रूसी तेल आयात कम करने को तैयार है, पर बराबर कीमत चाहता है – अमेरिका सहित अन्य स्रोतों से।
- रूसी हथियारों का साया: भारत दशकों से रूसी हथियारों पर निर्भर रहा है। हालांकि अभी रूस से नई खरीद की तात्कालिक ज़रूरत नहीं बताई जा रही (वे S-500 मिसाइल सिस्टम जैसी नई तकनीक पेश कर रहे हैं), लेकिन पूरी तरह छुटकारा अभी मुश्किल है।
- चीन का डर – असली कारण?: भारत का अमेरिका के साथ रक्षा साझेदारी बढ़ाने का एक बड़ा कारण चीन से बढ़ती प्रतिस्पर्धा और चिंता है। यह साझेदारी (खुफिया साझाकारी, सैन्य अभ्यास) अभी भी जारी है।
मोदी सरकार के सामने चुनौतियां:
- आर्थिक झटका: विश्लेषकों ने टैरिफ़ का असर भारत की जीडीपी विकास दर पर 0.3% तक गिरावट का अनुमान लगाया है।
- राजनीतिक नाजुकी: ट्रंप के धमकी भरे बयान और घरेलू स्तर पर बढ़ती अमेरिका-विरोधी भावनाएं रूस से पश्चिम की ओर रणनीतिक बदलाव को और कठिन बना रही हैं। पाकिस्तान के मुद्दे पर हालिया तनाव भी भूमिका निभा रहा है।
निष्कर्ष: अस्थायी ठहराव या बड़ी बदलाव की शुरुआत?
भारत का यह कदम साफ दर्शाता है कि व्यापार और भू-राजनीति अब अलग नहीं रहे। ट्रंप के टैरिफ़ ने भारत-अमेरिका संबंधों में एक गहरी दरार डाली है। यह ठहराव “करारी चाल” हो सकता है, जो टैरिफ़ मुद्दे के हल होते ही खत्म हो जाए। हालांकि, यह भारत की विदेश नीति की जटिलताओं को भी उजागर करता है – चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका पर निर्भरता बनाम रूस के साथ ऐतिहासिक संबंध और राष्ट्रीय हितों की रक्षा। आने वाले दिन बताएंगे कि यह विवाद कितना गहरा जाता है या दोनों देश समझौते की राह पाते हैं।
यह भी याद रखें: यह स्थिति विकसित हो रही है। आधिकारिक पुष्टि या नए बयान आने पर स्थिति बदल सकती है।
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