तेहरान, 04 अगस्त 2025: ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान ने एक महत्वपूर्ण घोषणा की है, जिसमें चाबहार बंदरगाह से रूस और तुर्की तक रेल परियोजना शुरू करने की योजना का ऐलान किया गया। इस घोषणा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मौजूदगी और उनकी खुशी ने भारत में रणनीतिक चिंताएं बढ़ा दी हैं। यह परियोजना क्षेत्रीय व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ाने का दावा करती है, लेकिन भारत के लिए इसके भू-राजनीतिक निहितार्थ गंभीर हो सकते हैं।
चाबहार का महत्व और भारत की भूमिका
चाबहार बंदरगाह, ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित, भारत के लिए एक रणनीतिक संपत्ति है। भारत ने इस बंदरगाह के विकास में 37 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश किया है, ताकि पाकिस्तान को बायपास करते हुए अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच बनाई जा सके। यह बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भारत को यूरोप से जोड़ता है।
ईरान-पाकिस्तान सहयोग और भारत की चिंता
राष्ट्रपति पेज़ेशकियान ने इस रेल परियोजना को क्षेत्रीय सहयोग का प्रतीक बताया, लेकिन पाकिस्तान की भागीदारी की संभावना ने भारत को सतर्क कर दिया है। पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह, जो चाबहार से केवल 170 किलोमीटर दूर है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है, पहले से ही भारत के लिए प्रतिस्पर्धी चुनौती है। अगर चाबहार परियोजना में पाकिस्तान शामिल होता है, तो यह भारत की रणनीतिक स्थिति को कमजोर कर सकता है।
शहबाज शरीफ ने इस घोषणा का स्वागत करते हुए कहा, “यह परियोजना न केवल व्यापार को बढ़ाएगी, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी मजबूत करेगी।” उनकी हाल की ईरान और तुर्की यात्राओं में भारत-पाकिस्तान तनाव और कश्मीर मुद्दा भी चर्चा में रहा, जिससे भारत की चिंताएं और गहरी हो गई हैं।
भारत के लिए चुनौतियां
- रणनीतिक प्रभाव में कमी: चाबहार भारत के लिए मध्य एशिया तक पहुंच का वैकल्पिक मार्ग है। पाकिस्तान की भागीदारी इस प्रभाव को कम कर सकती है।
- चीन का बढ़ता प्रभाव: यह परियोजना अप्रत्यक्ष रूप से CPEC को मजबूत कर सकती है, जो भारत के लिए रणनीतिक चुनौती है।
- क्षेत्रीय गठजोड़: ईरान, पाकिस्तान और तुर्की का बढ़ता सहयोग भारत के लिए कूटनीतिक दबाव बढ़ा सकता है, खासकर तब जब तुर्की ने हाल के तनावों में पाकिस्तान का समर्थन किया है।
भारत की स्थिति और भविष्य
भारत ने चाबहार बंदरगाह के विकास और INSTC को मजबूत करने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं। हाल ही में, भारत ने बंदरगाह के संचालन के लिए 10 साल का समझौता किया है। लेकिन इस नई घोषणा के बाद भारत को अपनी कूटनीति को और तेज करना होगा, ताकि वह क्षेत्र में अपनी रणनीतिक स्थिति को बनाए रख सके।
विदेश नीति विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को ईरान और रूस के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करना चाहिए, साथ ही क्षेत्रीय तनाव को कम करने के लिए सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस घोषणा पर अभी कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन कूटनीतिक हलकों में इस पर गहन चर्चा शुरू हो गई है।
निष्कर्ष
चाबहार से रूस और तुर्की तक रेल परियोजना क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिए एक बड़ा कदम हो सकता है, लेकिन भारत के लिए यह रणनीतिक चुनौतियां ला सकता है। इस परियोजना का भविष्य और इसमें पाकिस्तान की भूमिका अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन भारत को अपनी रणनीति को मजबूत करने के लिए त्वरित कदम उठाने होंगे।
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