शिमला, 4 अगस्त 2025: सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश और अन्य हिमालयी राज्यों में पर्यावरणीय संकट को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए चेतावनी दी है कि अनियंत्रित विकास और पर्यावरण की अनदेखी के कारण पहाड़ी शहरों का अस्तित्व खतरे में है। कोर्ट ने कहा कि अगर यही स्थिति रही, तो हिमाचल जैसे राज्य “नक्शे से गायब” हो सकते हैं। यह टिप्पणी हाल के मॉनसून में हुई तबाही के बाद आई, जिसमें भूस्खलन और बाढ़ ने 170 से अधिक लोगों की जान ले ली।
मानव निर्मित आपदाओं का कहर
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भूस्खलन, बाढ़, और बादल फटने जैसी घटनाएं अब प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव निर्मित हैं। अनियंत्रित निर्माण, जंगल कटाई, और अवैज्ञानिक विकास इन आपदाओं की जड़ हैं। हिमाचल में होटल, रिसॉर्ट्स, और सड़कों का निर्माण बिना पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन के हो रहा है, जिससे पहाड़ों की स्थिरता कमजोर हो रही है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना बाढ़ और हिमस्खलन का खतरा बढ़ा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
हिमाचल प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “राजस्व और पर्यटन के लिए पर्यावरण को दांव पर नहीं लगाया जा सकता।” कोर्ट ने सरकारों को निर्देश दिए कि:
- हर विकास परियोजना से पहले भूवैज्ञानिक और पर्यावरण विशेषज्ञों की सलाह ली जाए।
- स्थानीय समुदायों और उनके पारंपरिक ज्ञान को योजनाओं में शामिल किया जाए।
- सतत विकास मॉडल अपनाए जाएं, ताकि पर्यावरण और विकास में संतुलन बना रहे।
हिमाचल ही नहीं, पूरा हिमालय खतरे में
यह संकट सिर्फ हिमाचल तक सीमित नहीं है। उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, और सिक्किम जैसे राज्यों में भी यही स्थिति है। 2013 की केदारनाथ त्रासदी और 2021 की चमोली आपदा इसके उदाहरण हैं। सिक्किम में ग्लेशियल झीलों के फटने का खतरा बढ़ रहा है, जबकि जम्मू-कश्मीर में भूस्खलन और बर्फीले तूफान आम हो गए हैं।
स्थानीय लोगों की अनसुनी आवाज
स्थानीय निवासियों का कहना है कि विकास परियोजनाओं में उनकी बात नहीं सुनी जा रही। शिमला के एक सामाजिक कार्यकर्ता रमेश ठाकुर ने कहा, “हमारे गांवों में सड़कें और होटल बन रहे हैं, लेकिन भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है। सरकार को हमारे अनुभवों पर ध्यान देना चाहिए।”
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों से तत्काल कदम उठाने को कहा है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि:
- बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और जंगल कटाई पर रोक लगाई जाए।
- अवैध निर्माण पर सख्त कार्रवाई हो।
- आपदा प्रबंधन के लिए मजबूत प्रणाली विकसित की जाए।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जाएं।
जनता से अपील
कोर्ट की चेतावनी ने न केवल सरकारों, बल्कि आम जनता को भी जागरूक होने का संदेश दिया है। पर्यावरण संरक्षण और सतत पर्यटन को बढ़ावा देना अब समय की मांग है। अगर अभी नहीं जागे, तो हिमालय की खूबसूरत वादियां और शहर हमेशा के लिए खो सकते हैं।
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