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भारत-अमेरिका संबंधों में खटास का कारण: रूसी तेल आयात? एक गहन विश्लेषण

हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने एक बयान देकर भारत-अमेरिका संबंधों में चल रही एक संवेदनशील बहस को फिर से हवा दे दी है। उन्होंने भारत द्वारा रूसी तेल के निरंतर आयात को दोनों देशों के बीच संबंधों में “चिंता का विषय” (Point of Irritation) बताया है। यह मुद्दा भारत की ऊर्जा ज़रूरतों, आर्थिक हितों और रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ी भू-राजनीतिक उलझनों के बीच फंसा हुआ है।

रूबियो का बयान और अमेरिकी नाराज़गी

अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने स्पष्ट किया कि भारत द्वारा रूस से भारी मात्रा में तेल खरीदना अमेरिका के लिए नाराज़गी का कारण है। उन्होंने भारत को एक “सहयोगी” और “रणनीतिक साझेदार” मानते हुए भी यह आपत्ति जताई। रूबियो का मुख्य तर्क यह है कि जब अन्य विकल्प उपलब्ध हैं, तब भारत का रूस से तेल खरीदना अप्रत्यक्ष रूप से रूस के युद्ध प्रयासों को वित्तपोषित करता है, जिससे यूक्रेन में युद्ध लंबा खिंच रहा है। उनका यह बयान बीबीसी न्यूज और इकोनॉमिक टाइम्स सहित प्रमुख मीडिया आउटलेट्स पर चर्चा का विषय बना रहा है।

इस बयान की पृष्ठभूमि में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हालिया ऐलान भी है। ट्रंप ने 1 अगस्त, 2025 से भारत से आने वाले सभी आयातों पर 25% का टैरिफ लगाने की घोषणा की है। इसके अलावा, भारत द्वारा रूसी तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद पर एक “अनिर्दिष्ट” जुर्माना भी लगाया जाएगा। यह स्पष्ट आर्थिक दबाव का प्रयास है।

भारत का पक्ष: ऊर्जा सुरक्षा और गरीबों का हित

भारत ने हमेशा अपने रूसी तेल आयात का बचाव किया है। भारत का मुख्य तर्क है कि वह एक बड़ा ऊर्जा आयातक देश है और उसे अपनी विशाल आबादी की ज़रूरतों को पूरा करना है। सस्ता कच्चा तेल खरीदना लाखों गरीब भारतीयों को बढ़ती लागत से बचाने के लिए ज़रूरी है।

यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूसी तेल भारी छूट पर उपलब्ध हुआ। इसका फायदा उठाते हुए भारत ने अपने रूसी तेल आयात में भारी बढ़ोतरी की। 2021 में जहां रूसी तेल भारत के कुल आयात का केवल 3% था, वहीं 2024 तक यह बढ़कर 35% से 40% हो गया। यह एक स्पष्ट आर्थिक निर्णय था।

हालिया बदलाव: छूट घटी, आयात रुका?

1 अगस्त, 2025 को आए ताज़ा विकास दिलचस्प मोड़ लेकर आए हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरियों – एचपीसीएल, बीपीसीएल, एमआरपीएल और आईओसीएल ने पिछले हफ्ते से रूसी कच्चे तेल का आयात रोक दिया है। इसकी मुख्य वजह है रूसी तेल पर मिलने वाली छूट में कमी। रूसी यूरल और ब्रेंट क्रूड के बीच का मूल्य अंतर घटकर लगभग $3 प्रति बैरल रह गया है, जो 2023 में $20 के आसपास था। एचएसबीसी ने भी जुलाई में खरीद में “उल्लेखनीय गिरावट” दर्ज की है। हालांकि, भारत के पेट्रोलियम मंत्रालय ने इस रुकावट के लिए कोई निर्देश जारी करने से इनकार किया है।

पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ज़ोर देकर कहा है कि भारत अपनी ज़रूरतें अन्य स्रोतों से पूरी कर सकता है। उन्होंने बताया कि भारत ने अपना तेल आयात दायरा 27 देशों से बढ़ाकर 40 देशों तक कर लिया है। यह संकेत है कि अमेरिकी प्रतिबंधों की आशंका के मद्देनज़र भारत अपने विकल्प बढ़ा रहा है।

आर्थिक और राजनीतिक असर: क्या होगा प्रभाव?

आर्थिक विश्लेषक संस्था केयरएज का मानना है कि रूस से दूरी बनाने का भारत के चालू खाता घाटे पर बहुत कम प्रभाव पड़ेगा। एक कारण यह है कि रूसी तेल की कीमतों में छूट पहले ही काफी कम हो चुकी है, जिससे उसका लाभ घट गया है।

लेकिन राजनीतिक असर गहरा है। अमेरिका भारत के तेल खरीद को अपने रणनीतिक हितों (रूस को अलग-थलग करने) के ख़िलाफ़ देखता है। रूबियो के शब्द इसी नाराज़गी को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा, “वैश्विक व्यापार – भारत एक सहयोगी है। यह एक रणनीतिक साझेदार है। विदेश नीति में किसी भी चीज़ की तरह, आप हर समय हर चीज़ पर 100 प्रतिशत सहमत नहीं होंगे।” यह बयान जटिलता को स्वीकार करता है, लेकिन अधिक समर्थन की उम्मीद भी दिखाता है।

इस विवाद ने अमेरिका-रूस के बीच कड़वाहट को भी बढ़ाया है। ट्रंप के “मृत अर्थव्यवस्थाओं” के बयान के जवाब में रूस के दिमित्री मेदवेदेव ने “द वॉकिंग डेड” और शीत युद्धकालीन सोवियत “डेड हैंड” सिस्टम का जिक्र करते हुए तनाव बढ़ा दिया है। भारत इस बीच रूस के साथ आर्थिक संबंध बनाए रखने और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी मज़बूत करने के बीच संतुलन बिठाने की कोशिश कर रहा है।

मुख्य बिंदुओं का सारांश:

पहलूविवरण
रूबियो का बयानभारत के रूसी तेल आयात को भारत-अमेरिका संबंधों में “चिंता का विषय” बताया; रूस के युद्ध प्रयासों को समर्थन देना मुख्य कारण।
भारत का औचित्यऊर्जा ज़रूरतों और लागत बचत पर ज़ोर; 2024 में रूसी तेल कुल आयात का 35-40%।
हालिया घटनाक्रमभारतीय रिफाइनरियों ने घटी छूट के कारण रूसी तेल आयात रोका; भारत 40 देशों से तेल खरीद सकता है।
अमेरिकी कार्रवाईट्रंप ने भारतीय आयात पर 25% टैरिफ और रूसी तेल खरीद पर जुर्माने की घोषणा की (1 अगस्त 2025 से प्रभावी)।
आर्थिक प्रभावरूस से दूरी का भारत के चालू खाता घाटे पर न्यूनतम प्रभाव पड़ने का अनुमान।
भू-राजनीतिक संदर्भयूक्रेन युद्ध से जुड़ा तनाव; अमेरिका का रूस को अलग-थलग करने का प्रयास; भारत की रणनीतिक स्वायत्तता।

निष्कर्ष: संतुलन की कला

मार्को रूबियो का बयान भारत-अमेरिका संबंधों में आर्थिक, रणनीतिक और राजनयिक कारकों की जटिल परस्पर क्रिया को दर्शाता है। रूसी तेल आयात इस तनाव का केंद्र बना हुआ है। 1 अगस्त, 2025 तक, भारतीय रिफाइनरियों द्वारा रूसी तेल आयात पर रोक और आयात स्रोतों में विविधता लाने के प्रयास अमेरिकी चिंताओं के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं।

हालांकि, भारत की ऊर्जा सुरक्षा की मूलभूत आवश्यकता और अमेरिका की भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं के बीच का मूल तनाव अभी भी बना हुआ है। यह स्थिति ध्रुवीकृत वैश्विक परिदृश्य में व्यापार और कूटनीति को संचालित करने की चुनौतियों को उजागर करती है। भारत और अमेरिका दोनों को अपने आर्थिक हितों और रणनीतिक साझेदारी के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में तेल की कीमतें, छूट की स्थिति और अंतरराष्ट्रीय दबाव इस जटिल समीकरण को कैसे आकार देते हैं।

क्या आपको लगता है कि भारत को रूसी तेल आयात कम कर देना चाहिए, या अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए?

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