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Trump's reply to India on buying oil from Russia, Pakistan got a big deal

क्या पाकिस्तान में सचमुच हैं ‘विशाल तेल भंडार’? ट्रंप के दावे पर सवाल

1 अगस्त 2025 – एक आश्चर्यजनक भू-राजनीतिक कदम में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 30 जुलाई, 2025 को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ के माध्यम से घोषणा की कि अमेरिका और पाकिस्तान ने एक व्यापार समझौते पर अंतिम रूप दिया है, जो पाकिस्तान के “विशाल तेल भंडार” के विकास पर केंद्रित है। यह घोषणा, जिसने व्यापक बहस और संदेह पैदा किया है, ऐसे समय में आई है जब ट्रंप ने 1 अगस्त, 2025 से भारतीय सामानों पर 25% टैरिफ लगाने का फैसला किया है, साथ ही भारत के रूस के साथ व्यापार जारी रखने के लिए एक अनिर्दिष्ट जुर्माना भी लगाया है। ट्रंप ने संकेत दिया कि पाकिस्तान का तेल “कभी न कभी” भारत को निर्यात किया जा सकता है, जिससे दक्षिण एशिया की पहले से ही जटिल राजनीति में एक नया मोड़ जुड़ गया है।

अमेरिका-पाकिस्तान समझौते का विवरण

यह समझौता वाशिंगटन में हुई वार्ताओं के बाद अंतिम रूप से तैयार हुआ, जिसमें पाकिस्तान के वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमिसन ग्रीयर और अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटनिक शामिल थे। इसका उद्देश्य ऊर्जा, खनन, सूचना प्रौद्योगिकी और क्रिप्टोकरेंसी जैसे क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग को मजबूत करना है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस समझौते को “ऐतिहासिक” बताते हुए ट्रंप का आभार व्यक्त किया और कहा कि इससे द्विपक्षीय संबंध मजबूत होंगे।

हालांकि समझौते में पाकिस्तानी निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ कम करने के प्रावधान शामिल हैं, लेकिन ट्रंप की घोषणा का मुख्य आकर्षण पाकिस्तान के तेल भंडार का संयुक्त विकास है। ट्रंप ने कहा, “हमने पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया है, जिसके तहत अमेरिका और पाकिस्तान मिलकर उनके विशाल तेल भंडार को विकसित करेंगे। हम उस तेल कंपनी का चयन कर रहे हैं जो इस साझेदारी का नेतृत्व करेगी।” हालांकि, समयसीमा, पैमाने या शामिल कंपनी के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी गई।

पाकिस्तान के तेल भंडार पर सवाल

ट्रंप के “विशाल तेल भंडार” के दावे ने कई लोगों को हैरान किया है, क्योंकि वैश्विक मानकों के हिसाब से पाकिस्तान के सिद्ध तेल भंडार मामूली हैं। 2016 के वर्ल्डोमीटर डेटा के अनुसार, पाकिस्तान के पास लगभग 353.5 मिलियन बैरल सिद्ध तेल भंडार है, जो दुनिया के कुल भंडार का सिर्फ 0.021% है। वर्तमान खपत दर (प्रतिदिन 556,000 बैरल) के हिसाब से यह भंडार बिना आयात के दो साल से भी कम समय तक चलेगा। पाकिस्तान की दैनिक तेल उत्पादन क्षमता 70,000–80,000 बैरल है, जो घरेलू मांग का सिर्फ 15–20% पूरा करती है। शेष 85% जरूरत के लिए पाकिस्तान को आयात पर निर्भर रहना पड़ता है, जिस पर सालाना 11.3 अरब डॉलर खर्च होता है।

कुछ रिपोर्ट्स में पाकिस्तान के तटीय जलक्षेत्र या बलूचिस्तान (संसाधनों से भरपूर लेकिन राजनीतिक रूप से अस्थिर प्रांत) में असंपर्कित भंडार की संभावना जताई गई है। 2024 के एक सर्वे में तटीय भंडार की पुष्टि हुई थी, लेकिन 2019 में एक्सॉनमोबिल द्वारा की गई खोजी ड्रिलिंग असफल रही थी। 2015 की एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में 9.1 बिलियन बैरल शेल तेल हो सकता है, लेकिन तकनीकी और वित्तीय चुनौतियों के कारण इसका दोहन नहीं हो पाया है।

सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने अनुमान लगाया है कि यह समझौता बलूचिस्तान पर केंद्रित हो सकता है, जहां पाकिस्तान के अधिकांश तेल भंडार स्थित हैं। हालांकि, इस साल अलगाववादी समूहों द्वारा 37 से अधिक पाइपलाइन हमले किए जा चुके हैं, जो किसी भी बड़े पैमाने पर तेल निकासी के लिए गंभीर सुरक्षा जोखिम पैदा करते हैं।

भू-राजनीतिक संदर्भ और प्रभाव

ट्रंप की यह घोषणा भारत पर टैरिफ लगाने के ठीक बाद आई है, जिसमें उन्होंने अमेरिका के साथ भारत के व्यापार घाटे ($45.7 बिलियन, 2024) और रूस से तेल व सैन्य सामान खरीदने को आधार बताया है। ट्रंप का यह संकेत कि पाकिस्तान “कभी न कभी भारत को तेल बेच सकता है,” भारत-पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए एक चुनौतीपूर्ण टिप्पणी लगती है। भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, अपनी 88% कच्चे तेल की जरूरत आयात से पूरी करता है, जिसमें 2025 में रूस की हिस्सेदारी 35% थी। भारत के 4.8–4.9 बिलियन बैरल सिद्ध भंडार पाकिस्तान के भंडार से कहीं अधिक हैं, और उसका दैनिक उत्पादन (600,000+ बैरल) भी पाकिस्तान से कई गुना ज्यादा है।

विश्लेषकों का मानना है कि यह समझौता तेल से ज्यादा रणनीतिक महत्व का है। पाकिस्तान, जो अमेरिका का “प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी” है, के साथ संबंध मजबूत करके अमेरिका चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के माध्यम से चीन के प्रभाव को कम करना चाहता होगा और भारत पर रूसी तेल पर निर्भरता घटाने का दबाव बना सकता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का “विशाल भंडार” वाला दावा अतिशयोक्तिपूर्ण है और संभवतः पाकिस्तान ने अमेरिकी निवेश हासिल करने के लिए अपनी “अनदेखी संभावनाओं” का बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार किया हो।

भारतीय अधिकारियों ने पाकिस्तान से तेल आयात की व्यावहारिकता पर संदेह जताया है। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्रंप के दावे का मजाक उड़ाते हुए कहा, “उन्हें कुछ भ्रम हो सकता है… मैं उनकी कामना करता हूं!”

आगे क्या होगा?

जैसे-जैसे अमेरिका और पाकिस्तान इस साझेदारी के लिए एक तेल कंपनी का चयन करेंगे, इस समझौते की सफलता भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षणों, निवेश प्रतिबद्धताओं और पाकिस्तान की सुरक्षा चुनौतियों पर निर्भर करेगी। हालांकि इस समझौते को इस्लामाबाद में जश्न के साथ देखा जा रहा है, लेकिन दक्षिण एशियाई भू-राजनीति पर इसके व्यापक प्रभाव, खासकर अमेरिका-भारत संबंधों पर, अभी अनिश्चित हैं। भारत, जो नए टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका के साथ वार्ता कर रहा है, इस स्थिति पर बारीकी से नजर रखेगा।

फिलहाल, दुनिया पाकिस्तान के कथित “विशाल” तेल भंडार के बारे में और जानकारी का इंतजार कर रही है—क्या ट्रंप की यह घोषणा वास्तविक परिणाम देगी या यह जटिल क्षेत्र की राजनीति में सिर्फ एक चाल है?

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