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प्रधानमंत्री मोदी का गंगईकोंडा चोलापुरम मंदिर दर्शन: इतिहास और राजनीति का संगम

27 जुलाई, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के गंगईकोंडा चोलापुरम मंदिर में आदि थिरुवथिराई उत्सव के अवसर पर ऐतिहासिक यात्रा की। यह मंदिर, जिसे चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम ने 1035 ईस्वी में बनवाया था, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है और भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है। मोदी के इस दौरे में राजेंद्र चोल प्रथम के सम्मान में स्मारक सिक्का जारी किया गया और उनके व उनके पिता राजराज चोल की विशाल प्रतिमाएं स्थापित करने की घोषणा की गई। यह यात्रा न केवल सांस्कृतिक महत्व रखती है, बल्कि तमिलनाडु की राजनीति में भी एक सशक्त संदेश देती है।


गंगईकोंडा चोलापुरम मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

गंगईकोंडा चोलापुरम मंदिर, अरियालूर जिले में स्थित है, जिसे राजेंद्र चोल प्रथम ने गंगा नदी तक अपनी विजयी यात्रा के बाद नई चोल राजधानी के रूप में स्थापित किया था। यह मंदिर भगवान बृहदीश्वर (शिव) को समर्पित है और अपनी वास्तुकला, शिल्पकला एवं चोल काल की कांस्य मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।

  • आदि थिरुवथिराई उत्सव: यह त्योहार राजेंद्र चोल के जन्म नक्षत्र (थिरुवथिराई/आर्द्रा) से जुड़ा है और तमिल शैव भक्ति परंपरा को दर्शाता है। इस दौरान थेरुकुथु (सड़क नाटक) जैसे कार्यक्रमों में चोल सम्राट की विजय गाथाएं प्रस्तुत की जाती हैं।
  • चोलगंगम झील: यह झील “विजय का जल स्तंभ” मानी जाती है और चोल साम्राज्य की प्रशासनिक व सांस्कृतिक उत्कृष्टता को दर्शाती है।

चोल साम्राज्य ने न केवल भारत बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपना प्रभाव फैलाया, जिससे तमिल संस्कृति का वैश्विक प्रसार हुआ।


मोदी की यात्रा का राजनीतिक संदेश

प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा को केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि तमिलनाडु में भाजपा की रणनीतिक पहल के रूप में देखा जा रहा है। यहां कुछ प्रमुख राजनीतिक पहलू हैं:

1. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और चोल विरासत

मोदी ने चोल साम्राज्य को भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बताया और उनके कुडावोलाई प्रणाली (चुनावी पद्धति) को ब्रिटेन के मैग्ना कार्टा से भी पुराना बताकर भारत के लोकतांत्रिक इतिहास पर जोर दिया। यह भाजपा के “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के एजेंडे से जुड़ता है।

2. तमिलनाडु में भाजपा की मजबूती

तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके का वर्चस्व है, लेकिन भाजपा यहां अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। मोदी के दौरे में तिरुचिरापल्ली में रोड शो और स्थानीय कलाकार इलयाराजा के संगीत कार्यक्रम ने तमिल संस्कृति के प्रति उनके सम्मान को दिखाया।

3. विकास और सुरक्षा का प्रतीक

मोदी ने चोलगंगम झील के जीर्णोद्धार (₹20 करोड़) और “ऑपरेशन सिंदूर” जैसी सुरक्षा पहलों का जिक्र करके चोलों की सैन्य शक्ति और आधुनिक भारत की ताकत के बीच समानता दिखाई।

4. तमिल गौरव और वैश्विक पहचान

राजेंद्र चोल प्रथम की समुद्री विजयों ने तमिल प्रभाव को दक्षिण-पूर्व एशिया तक पहुंचाया। मोदी ने स्मारक सिक्के और प्रतिमाओं की घोषणा करके तमिल डायस्पोरा और स्थानीय लोगों से जुड़ने की कोशिश की।


आलोचनात्मक दृष्टिकोण

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा तमिल इतिहास को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास है, क्योंकि भाजपा का तमिलनाडु में अभी भी कमजोर आधार है। द्रविड़ पार्टियां भाजपा के “हिंदी-हिंदू” एजेंडे का विरोध करती हैं, इसलिए यह दौरा सांस्कृतिक एकता के साथ-साथ राजनीतिक चुनौती भी है।


निष्कर्ष

मोदी की गंगईकोंडा चोलापुरम यात्रा ने चोल साम्राज्य की विरासत को आधुनिक भारत की राजनीति से जोड़ दिया है। यह भाजपा की तमिलनाडु में सांस्कृतिक पहचान बनाने और राष्ट्रीय एकता का संदेश देने की रणनीति का हिस्सा है। आने वाले समय में देखना होगा कि क्या यह तमिलनाडु की जनता के बीच भाजपा को नई पहचान दिला पाता है।

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क्या आपको पता था?

  • राजेंद्र चोल ने अपनी गंगा विजय के बाद “गंगईकोंड चोलन” (गंगा को जीतने वाला चोल) की उपाधि धारण की।
  • चोल साम्राज्य का नौसैनिक बेड़ा दुनिया के सबसे शक्तिशाली बेड़ों में से एक था।

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