अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में रूस पर दबाव बनाने के लिए एक नई रणनीति की घोषणा की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि रूस यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई जारी रखता है, तो अमेरिका न केवल रूस पर, बल्कि उसके साथ व्यापार करने वाले देशों पर भी 100% टैरिफ लगा सकता है। इसका मतलब है कि भारत जैसे देश, जो रूस के साथ मजबूत आर्थिक संबंध रखते हैं, अमेरिकी बाजार में अपने निर्यात पर भारी टैक्स का सामना कर सकते हैं।
भारत-रूस व्यापार: मौजूदा स्थिति
भारत और रूस के बीच व्यापारिक संबंध काफी मजबूत हैं, खासकर ऊर्जा, रक्षा और कृषि क्षेत्रों में। 2023-24 में दोनों देशों के बीच कुल व्यापार लगभग 65 अरब डॉलर का रहा, जिसमें भारत का निर्यात लगभग 5 अरब डॉलर और आयात 60 अरब डॉलर से अधिक था।
भारत के प्रमुख आयात (रूस से):

- कच्चा तेल (50% से अधिक)
- रक्षा उपकरण (हथियार, मिसाइल सिस्टम)
- उर्वरक (पोटाश और यूरिया)
- हीरे और कीमती धातुएं
भारत के प्रमुख निर्यात (रूस को):
- फार्मास्यूटिकल्स (दवाएं)
- ऑटोमोबाइल पार्ट्स
- कपड़ा और इलेक्ट्रॉनिक्स
- चाय, कॉफी और कृषि उत्पाद
अमेरिकी टैरिफ का भारत पर प्रभाव
यदि अमेरिका भारत पर सेकेंडरी टैरिफ लगाता है, तो इसके निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं:
1. ऊर्जा क्षेत्र को झटका

- भारत रूस से प्रतिदिन 1.7 मिलियन बैरल तेल आयात करता है, जो उसकी कुल जरूरत का 35% है।
- रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंध लगने से भारत को महंगे विकल्प (सऊदी अरब, अमेरिका) की ओर जाना पड़ सकता है, जिससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं।
- भारतीय रिफाइनरियों (जैसे आईओसी, रिलायंस) को नुकसान हो सकता है, क्योंकि वे रूसी कच्चे तेल पर निर्भर हैं।
2. रक्षा उद्योग पर असर
- भारत की 60% रक्षा आपूर्ति रूस पर निर्भर है, जिसमें एस-400 मिसाइल, सुखोई विमान, टी-90 टैंक शामिल हैं।
- अमेरिका द्वारा CAATSA (काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन्स एक्ट) के तहत प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जैसा कि तुर्की के साथ हुआ था।
- भारत को “मेक इन इंडिया” रक्षा उद्योग को तेजी से बढ़ाना होगा ताकि रूस पर निर्भरता कम हो।
3. कृषि और उर्वरक क्षेत्र में मुश्किल
- रूस भारत को सस्ते उर्वरक (पोटाश, यूरिया) निर्यात करता है।
- यदि व्यापार प्रभावित होता है, तो किसानों को महंगे उर्वरक खरीदने पड़ सकते हैं, जिससे खाद्य महंगाई बढ़ सकती है।
4. फार्मा और ऑटोमोबाइल सेक्टर पर दबाव
- भारत रूस को दवाएं और मेडिकल उपकरण निर्यात करता है। अमेरिकी टैरिफ से इन उत्पादों की कीमत बढ़ सकती है, जिससे भारतीय कंपनियों को नुकसान होगा।
- टाटा, महिंद्रा जैसी कंपनियों के वाहनों और पुर्जों का निर्यात प्रभावित हो सकता है।
क्या भारत के पास कोई विकल्प है?
- अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को तेज करना: भारत पहले से ही अमेरिका के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर बातचीत कर रहा है। यदि यह समझौता हो जाता है, तो ट्रंप प्रशासन भारत पर टैरिफ कम कर सकता है।
- रूस के साथ रुपये-रूबल व्यापार को बढ़ावा: डॉलर से बचने के लिए भारत और रूस स्थानीय मुद्राओं में लेनदेन बढ़ा सकते हैं।
- अन्य देशों (ईरान, सऊदी अरब) से तेल आयात बढ़ाना: ताकि रूस पर निर्भरता कम हो।
निष्कर्ष
अमेरिका की टैरिफ नीति भारत के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है, खासकर तेल, रक्षा और कृषि क्षेत्रों में। हालांकि, भारत अगर अपने घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे और अमेरिका के साथ रणनीतिक समझौते करे, तो इस संकट से बचा जा सकता है। अगले कुछ महीनों में भारत सरकार की नीतियां ही तय करेंगी कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए।
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